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Tuzk E Jahangiri in Hindi Pdf Download
पुस्तक का नाम | Tuzk E Jahangiri in Hindi Pdf |
पुस्तक के लेखक | डा. मथुरालाल शर्मा |
साइज | 28.45 Mb |
पृष्ठ | 390 |
फॉर्मेट | |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | जीवनी |


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सिर्फ पढ़ने के लिये
पार्वती जी बोली – सखी चंचले! सुंदरी! मैं तुम्हारी की हुई इस स्तुति से बहुत प्रसन्न हूँ। बोलो मांगती हो? तुम्हारे लिए मुझे कुछ भी अदेय नहीं है। चंचला बोली – निष्पाप गिरिराज कुमारी! मेरे पति बिन्दुग इस समय कहाँ है उनकी कैसी गति हुई है यह मैं नहीं जानती।
कल्याणमयी दीन वत्सले! मैं अपने उन पतिदेव से जिस प्रकार संयुक्त हो सकूं वैसा ही उपाय कीजिए। महेश्वरी! महादेवी! मेरे पति एक शूद्र जातीय के प्रति आसक्त थे और पाप में डूबे रहते थे। उनकी मृत्यु मुझसे पहले ही हो गयी थी। न जाने वे किस गति को प्राप्त हुए।
गिरिजा ने कहा – बेटी! तुम्हारा बिन्दुग नाम वाला पति बड़ा पापी था। उसका अन्तःकरण बड़ा ही दूषित है। वह महामूढ़ मृत्यु के बाद नरक में पड़ा अगणित वर्षो तक नरक में अनेक प्रकार के दुःख भोगकर वह पापात्मा अपने शेष पाप को भोगने के लिए विंध्य पर्वत पर पिशाच हुआ है।
इस समय वह पिशाच अवस्था में ही है और अनेक प्रकार के क्लेश उठा रहा है। वह वही वायु पीकर रहता और हमेशा सब प्रकार के कष्ट सहता है। सूत जी कहते है – शौनक! गौरी देवी की यह बात सुनकर उत्तम व्रत का पालन करने वाली चंचला उस समय पति के महान दुःख से दुखी हो गयी।
फिर मन को स्थिर करके उस ब्राह्मण पत्नी ने व्यथित हृदय से महेश्वरी को नमस्कार करके फिर पूछा। चंचला बोली – महेश्वरी! महादेवी! मुझपर कृपा कीजिए और मेरे उस पति का अब उद्धार कर दीजिए। देवी! कुत्सित बुद्धि वाले उस पापात्मा पति को किस उपाय से उत्तम गति प्राप्त हो सकती है यह शीघ्र बताइये आपको नमस्कार है।
पार्वती जी ने कहा – तुम्हारा पति यदि शिव पुराण की पुण्यमयी उत्तम कथा सुने तो सारी दुर्गति को पार करके वह उत्तम गति का भागी हो सकता है। अमृत के समान मधुर अक्षरों से युक्त गौरी का यह वचन आदर पूर्वक सुनकर चंचला ने हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर उन्हें बारंबार प्रणाम किया।
फिर अपने पति के समस्त पापो की शुद्धि और उत्तम गति की प्राप्ति के लिए पार्वती देवी से यह प्रार्थना की कि मेरे पति को शिव पुराण सुनाने की व्यवस्था होनी चाहिए। उस ब्राह्मण पत्नी के बारंबार प्रार्थना करने पर शिव प्रिया गौरी देवी को बड़ी दया आ गयी।
उन भक्त वत्सला महेश्वरी गिरिराज कुमारी ने भगवान शिव की उत्तम कीर्ति का गान करने वाले गंधर्वराज तुम्बुरु को बुलाकर उनसे प्रसन्नता पूर्वक इस प्रकार कहा – तुंबुरो! तुम्हारी भगवान शिव में प्रीति है। तुम मेरे मन की बातों को जानकर मेरे अभीष्ट कार्यो को सिद्ध करने वाले हो।
इसलिए मैं तुमसे एक बात कहती हूँ। तुम्हारा कल्याण हो। तुम मेरी इस सखी के साथ शीघ्र ही विंध्य पर्वत पर जाओ। वहां पर एक महाघोर और भयंकर पिशाच रहता है। उसका वृतांत तुम आरम्भ से ही सुनो। मैं तुमसे प्रसन्नता पूर्वक सब कुछ बताती हूँ।
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