Vairagya Shatak Pdf | वैराग्य शतक Pdf

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Vairagya Shatak Pdf Download

 

 

 

पुस्तक का नाम  वैराग्य शतक Pdf
पुस्तक के लेखक  भतृहरि 
साइज  8 Mb 
फॉर्मेट  Pdf 
भाषा  हिंदी 
पृष्ठ  503 
श्रेणी 

 

 

 

 

Vairagya Shatak Pdf
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सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

 

ज्ञान, विवेक, वैराग्य, विज्ञान, तत्वज्ञान और वह अनेको गुण जो जगत में मुनि के लिए भी दुर्लभ है वह सब मैं आज तुझे प्रदान कर दूंगा इसमें संदेह नहीं। जो तेरे मन को भावे सो मांग ले। प्रभु के वचन सुनकर मैं बहुत प्रेम से भर गया। तब मन में अनुमान करने लगा प्रभु ने सभी सुख देने की बात कही यह तो सत्य है पर अपनी भक्ति देने की बात नहीं कही।

 

 

 

 

भक्ति से रहित सब गुण और सब सुख वैसे ही फीके है जैसे नमक बिना बहुत प्रकार के भोजन और पदार्थ। भजन से रहित सुख किस काम के? हे पक्षीराज! ऐसा विचार कर मैं बोला। हे प्रभो! यदि आप प्रसन्न होकर मुझे वर देते है और मुझपर कृपा का स्नेह करते है तो हे स्वामी! मैं अपना मन भावन वर मांगता हूँ। आप उदार है और हृदय के भीतर की जानने वाले है।

 

 

 

 

आपकी जिस अविरल और विशुद्ध, अनन्य, निष्काम भक्ति की श्रुति और पुराण गाते है। जिसे योगीश्वर मुनि ढूंढते है और प्रभु की कृपा से कोई विरला ही उसे प्राप्त करता है। हे भक्तो के मन इच्छित फल देने वाले कल्पवृक्ष! हे शरणागत के हितकारी! हे कृपासागर! हे सुख धाम श्री राम जी! दया करके मुझे अपनी वही भक्ति दीजिए।

 

 

 

 

‘एवमस्तु’ कहकर रघुवंश के स्वामी परम सुख देने वाले वचन बोले – हे काक! सुन, तू स्वभाव से ही बुद्धिमान है। ऐसा वरदान कैसे न मांगता? तूने सब सुखो का भंडार भक्ति मांग लिया। जगत में तेरे समान बड़भागी कोई नहीं है। वह मुनि जो जप और योग की तपन से शरीर कसते रहते है।

 

 

 

 

कोटि उपाय करके भी जिस भक्ति को नहीं प्राप्त कर सकते है वही भक्ति तूने मांगी। तेरी चतुरता देखकर मैं रीझ गया। वह चतुरता मुझे बहुत ही अच्छी लगी। हे पक्षी! सुन, मेरी कृपा से अब समस्त शुभ गण तेरे हृदय में बसेंगे। भक्ति, ज्ञान, विज्ञान, वैराग्य, योग मेरी लीलाये और उनके रहस्य तथा विभाग इन सबके भेद को तू मेरी कृपा से ही समझ जायेगा। तुझे साधन का कष्ट नहीं होगा।

 

 

 

 

माया से उत्पन्न होने वाले भ्रम अब तुझे नहीं व्यापेंगे। मुझे अनादि, अजन्मा, अगुण प्रकृति के गुणों से रहित और गुणातीत, गुणों का भंडार ब्रह्म समझना। हे काक! सुन, मुझे भक्त निरंतर प्रिय है। ऐसा विचारकर शरीर वचन और मन से मेरे चरणों में अटल प्रेम करना।

 

 

 

 

अब मेरी सत्य, सुगम, वेदादि के द्वारा वर्णित परम निर्मल वाणी सुन। मैं तुझको यह ‘निज सिद्धांत’ सुनाता हूँ। सुनकर मन में धारण कर और सब तजकर मेरा भजन कर। यह सारा संसार मेरी माया से ही उत्पन्न है। इनमे अनेक प्रकार के चराचर जीव है। वह सभी मुझे प्रिय है क्योंकि वह सभी मेरे द्वारा उत्पन्न किए हुए है। किन्तु मनुष्य मुझको सबसे अच्छे लगते है।

 

 

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