वाल्मीकि रामायण गीता प्रेस | Valmiki Ramayan in Hindi Pdf

आज इस पोस्ट में हम आप लोगो के लिए Valmiki Ramayan in Hindi Pdf लेकर आये है आप इसे नीचे दी गयी लिंक से डाउनलोड कर सकते है साथ में आप सूरदास जीवन परिचय Pdf भी पढ़ सकते है।

 

 

 

 

Valmiki Ramayan Pdf In Hindi

 

 

 

 

 

 

 

 

महर्षि वाल्मीकि 

 

 

 

आदि काल से ही भारत की पवन भूमि पर अनेक ऐसे महाकाव्य की रचना हुई है ,कि जिसके समकक्ष कोई भी साहित्य नहीं है। भारत की भूमि को कई तपस्वियो ,पराक्रमियों ने अपने तप और पराक्रम से गौरव के शिखर का महिमा -मंडन किया है।

 

 

 

 

भारत की पावन भूमि ,महान संत ,ऋषि मुनियो तथा महापुरुषों का जन्म स्थल और कर्म क्षेत्र रहा है ,यही कारण रहा है कि  भारतीय शिक्षा ,ज्ञान का अनुकरण कई देश -विदेश में होता रहा है। भारत के महान तपस्वी तथा (रामायण )नामक महाकाव्य के सृजन कर्ता -महर्षि वाल्मीकि – सदा ही अग्रणी है जिन्होंने सारी दुनिया को (रामायण महाकाव्य )के माध्यम से चलने के लिए प्रेरित किया।

 

 

 

 

महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय –

 

 

 

महर्षि वाल्मीकि को (रामायण महाकाव्य )का संस्कृत में लेखन कार्य के लिए वहुत ही प्रतिष्ठा प्राप्त है ,उन्हों ने संस्कृत के श्लोको से -रामायण -नामक महान ग्रंथ की रचना किया जिसे देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी लोकप्रियता प्राप्त है। रामायण से सभी लोगों को आत्मसंयम ,मर्यादितआचरण ,परिवार तथा मर्यादित समाज निर्माण की शिक्षा मिलती है।

 

 

 

महर्षि वाल्मीकि के संस्कृत महाकाव्य -रामायण -में ही उल्लेख मिलता है कि -राम -हर प्रकार से सम्पूर्ण होते हुए भी कभी भी अपनी शक्ति का अनुचित उपयोग नहीं किया बल्कि सदैव ही मर्यादा का पालन करते रहे। महर्षि वाल्मीकि ने -राम -के मर्यादित जीवन का सुंदर चित्रण संस्कृत में लिखे गए (रामायण महाकाव्य )में किया है।

 

 

 

 

वाल्मीकि ऋषि की गणना वैदिक काल के महान ऋषियों में होती है। धार्मिक ग्रंथो तथा पुराणों में उल्लेख है कि -वाल्मीकि को कठोर तप करने के पश्चात ही महर्षि का पद प्राप्त हुआ था। ऐतिहासिक तथ्यों से ज्ञात होता है कि  आदिकाव्य रामायण )को संसार का सर्व प्रथम काव्य माना गया है.जिसका सृजन महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में किया था। महर्षि वाल्मीकि प्रारम्भ में एक केवट थे परन्तु वह अपनी तपस्या की शक्ति से (रामायण महाकाव्य ) का सृजन संस्कृत भाषा में करने में समर्थ हुए ,रामायण महाकाव्य की सृजनता को संस्कृत भाषा के कारण ही उन्हें आदि कवि कहा जाता है।

 

 

 

 

 

क्योकि उनके पहले किसी विद्वान् के द्वारा ऐसा सृजन सम्भव नहीं हुआ था। परमपिता ब्रह्मा जी से आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात ही उन्होंने -श्री राम -के जीवन चरित्र को आधार बना कर ही रामायण की रचना किया जो (महाकाव्य )बन गया। महर्षि वाल्मीकि ने सारे जगत के लिए युग -युगांतर तक संस्कृत की स्थापना का कार्य किया।

 

 

मनु स्मृति केअनुसार – प्रचेता को वशिष्ठ ,नारद पुलस्त्य आदि का भ्राता बतया गया है ,वाल्मीकि रामायण में स्वयं महर्षि वाल्मीकि कहते हैं कि वह प्रचेता के पुत्र हैं ,प्रचेता का नाम वरुण भी है और वरुण को ब्रह्मा जी का पुत्र कहा जाता है। वरुण पुत्र -वाल्मीकि का नाम रत्नाकर भी है। एक बार तपस्या में लीन होनर पर वरुण-पुत्र के ऊपर दीमक ने अपना घर बना लिया था जिसे वाल्मीकि कहा जाता है। वरुण -पुत्र जब अपनी तपस्या पूर्ण कर के दीमक के घर से बाहर निकले तब सभी लोग उन्हें वाल्मीकि कहने लगे।

 

 

 

 

एक किवदंती के अनुसार -बाल्य काल में एक निःसंतान भीलनी ने रत्नाकर का हरण कर लिया तथा उनका लालन -पालन किया वह भीलनी जहाँ रहती थी ,वहां के सभी लोग वन्य प्राणियो का आखेट तथा दस्यु कार्य करके अपना भरण -पोषण करते थे ,इसलिए इन्हे भील समुदाय का माना जाता है।

 

 

 

महर्षि वाल्मीकि का इतिहास तथा बाल्यकाल –

 

 

 

महर्षि कश्यप तथा अदिति के नौवे पुत्र प्रचेता की संतान ही महर्षि वाल्मीकि है ,इनकी माता का नाम वर्षिणी था ,और भृगु ऋषि इनके भ्राता थे। बचपन की अवस्था में एक भील ने इनका अपहरण कर लिया तथा वह भील इन्हे अपने पास रख कर इनका पालन -पोषण किया भील प्रजाति उस समय दस्यु कार्य करके तथा वन्य जीव -जन्तुओ का आखेट करके अपना जीवन यापन करता था ,जिसके प्रभाव में आ कर वाल्मीकि भी दस्यु बन गए थे।

 

 

 

रत्नाकर से वाल्मीकि तक की यात्रा –

 

 

 

भील  पालन -पोषण होने के कारण रत्नाकर एक राजा के सैनिक थे ,राजा का अपने सैनिको के साथ अच्छा आचरण नहीं होने से रत्नाकर ने बिद्रोह कर दिया ,विद्रोह के कारण राजा ने इन्हे दंड देने की घोषणा कर दिया ,जिस कारण से इन्हें जंगल में छिप कर रहना पड़ा ,उदर पूर्ति के लिए इन्हे रास्ते में जाते हुए लोंगो से लूट -पाट करने के लिए बाध्य होना पड़ता था यही कारण था कि  लोग इन्हे दस्यु कहने लगे थे। एक बार जंगल में इन्हे नारद जी दिखाई पड़ गए इन्होने नारद जी को पकड़ लिया। नारद जी ने पूछा -तुम यह पाप कर्म किस लिए करते हो ?दस्यु रत्नाकर ने कहा -मैं अपने परिवार की उदर पूर्ति के लिए ही यह कार्य करता हूँ।

 

 

 

 

नारद जी बोले -तुम अपने परिवार से जाकर पूछो कि  वह लोग तुम्हारे पाप कर्म में भागीदार होंगे ,रत्नाकर अपने परिवार से पूछने चला गया ,घर में सभी लोंगो ने उसके पाप की सजा में भागीदार होने से मना कर दिया -तब रत्नाकर बहुत दुखी हो गया ,इस घटना से उसका ह्रदय परिवर्तित हो गया। रत्नाकर ने नारद जी के सुझाव से तपस्वी का जीवन अपना लिया ,फिर कई वर्षों की कठिन साधना के फल स्वरुप उन्हें महर्षि का पद प्राप्त हुआ।

 

 

 

 

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