वर्दी वाला गुंडा | Vardi Wala Gunda Novel in Hindi Pdf

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Vardi Wala Gunda Novel Hindi Pdf

 

 

 

 

 

 

 

 

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चालाक सियार

 

 

लंबू नामक एक ऊंट था। उसका मालिक नटवर उससे बहुत काम लेता था पर खाने के लिए पेड़ की थोड़ी सी पत्तियां तोड़कर उसके सामने डाल देता था। बेचारे ऊंट के सामने मन मसोस कर रहने के सिवा कोई अन्य मार्ग नहीं था। बरसात का मौसम था। ऊंट को बांधने के लिए एक अच्छी सी जगह भी नहीं थी नटवर के पास।

 

 

 

लंबू ऊंट खपरैल के टूटे छप्पर में बंधा हुआ था जबकि उसका मालिक नटवर अपने घर में चैन की नींद सो रहा था। गांव से लगी हुई एक नदी बहती थी जो बरसात के मौसम में रौद्र रूप धारण कर लेती थी। नदी के उस पार कई खेतो में मक्के और ककड़ी की फसल लहलहा रही थी।

 

 

 

एक रात भूरा सियार का मन मक्का और ककड़ी खाने के लिए लालच से भर गया लेकिन नदी उसके मार्ग में व्यवधान उत्पन्न कर रही थी। भूरा सियार ने एक उपाय लगाया। वह दबे पांव लंबू ऊंट के पास आया और बोला – लंबू भाई बरसात में तो आपकी बहुत चैन से रात कट जाती होगी।

 

 

 

लंबू ऊंट ने मुंह चलाते हुए कहा – क्यों हमारा मजाक उड़ा रहे हो। देखते नहीं हो टूटे हुए खपरैल से पानी टपक रहा है तथा मच्छरों की फ़ौज हमारे इतने बड़े शरीर पर दौड़ की प्रतियोगिता का आयोजन कर रही है ऐसी हालत में नींद हमसे अपना पीछा छुड़ाकर भाग गयी है।

 

 

 

अपनी हालत बयान करने के बाद लंबू ऊंट ने फिर पूछा – भूरे भाई कहो! तुम्हारा आना यहां कैसे हुआ? भूरा सियार बोला – मैं तुम्हारी खराब सेहत देखकर एक बात कहना चाहता हूँ अगर तुम मानो तब। लंबू ऊंट बोला – बताओ वह कौन सी बात है जिससे हमारी सेहत अच्छी हो जाएगी।

 

 

 

भूरा बोला – तुम हमारे साथ नदी के उस पार खेतो में चलो वहां हम लोग भरपेट मक्का और ककड़ी खाएंगे जिससे तुम्हारी सेहत सुधर जाएगी। लंबू ऊंट तैयार हो गया। भूरा सियार उसे लेकर नदी के तट पर गया लंबू ऊंट नदी में उतरते हुए बोला।

 

 

 

भूरा भाई आओ सियार बोला मुझे तैरना नहीं आता है। तब लंबू ऊंट उसे अपनी पीठ पर बैठा लिया फिर नदी के उस पार के खेतो में जाकर मक्का और ककड़ी खाकर वापस लौट आये। कुछ दिनों में ही लंबू की सेहत में सचमुच सुधार हो गया। एक दिन लंबू ऊंट के साथ भूरा सियार मक्का और ककड़ी का आनंद ले रहे थे।

 

 

 

आज भूरा के मन में ऊंट के साथ चुहल बाजी करने की इच्छा हो उठी। वह बोला – लंबू भाई! हमारी आदत है कि भोजन करने के पश्चात थोड़ा गायन करता हूँ। बहुत दिन से तुम्हारे साथ आ रहा हूँ लेकिन तुम्हारे चक्कर में मैं अपना गाना भूलता जा रहा हूँ सोचता हूँ आज थोड़ा गायन कर ही लूँ।

 

 

 

लंबू ऊंट बोला – अरे भूरा भाई! ऐसी हरकत न करना नहीं तो खेत का मालिक जाग जायेगा तब हमारा स्वागत करने लगेगा अभी तो मेरा पेट भी नहीं भरा है तुम्हारी वजह से हमारी धुलाई हो जाएगी। भूरा सियार बोला – कुछ भी हो लंबू भाई मैं अपनी गायकी को भूलने नहीं दूंगा।

 

 

 

इतना कहकर भूरा सियार ने अपना मुंह खोला फिर ‘हुआ-हुआ’ का राग अलापने लगा। खेत के मालिक की नींद टूट गयी वह खेत की तरफ दौड़ा। भूरा ने राग छेड़कर खेत से बाहर का रास्ता नाप लिया बेचारा लंबू! खेत के मालिक ने अपने और साथियो को बुलाया फिर लंबू ऊंट की ऐसी आवभगत किया कि बेचारा लंबू ऊंट अगर नदी में नहीं उतरता तब उसकी जान की खैर नहीं थी।

 

 

 

लंबू ऊंट और भूरा सियार की इस यात्रा को कई दिन बीत गए। एक दिन फिर भूरा सियार लंबू ऊंट के पास आया और नदी के उस पार मक्का खाने के लिए मनुहार करने लगा। लंबू ऊंट को भी बदला लेने का अवसर घर बैठे ही मिल गया था। वह थोड़ा ना नुकुर के बाद चलने के लिए तैयार हो गया।

 

 

 

अबकी बार ऊंट चौकन्ना था उसने जल्दी-जल्दी मक्का खाकर अपना पेट भर लिया तथा भूरा से पहले ही चलने के लिए तैयार हो गया। लंबू ऊंट बोला – भूरा अब मैं घर जा रहा हूँ। भूरा को नदी में तैरना आता नहीं था। वह लंबू ऊंट की विनती करने लगा कि थोड़ा देर और रुक जाओ।

 

 

 

पर लंबू ऊंट कहां रुकने वाला था। वह नदी की तरफ चल पड़ा मजबूर होकर भूरा को भी उसके साथ आना ही पड़ा जबकि उसका पेट भरा नहीं था। भूरा सियार लंबू की पीठ पर सवार हो गया। लंबू ऊंट जब नदी की बीच धारा में पहुंचा तब ठिठक गया।

 

 

 

उसे रुका हुआ देखकर भूरा सियार बोला – क्या हुआ लंबू भाई? तुम रुक क्यों गए? लंबू ऊंट बोला – भूरा भाई! हम भी अपनी आदत से परेशान है। भोजन के बाद हमे लौटने की इच्छा होती है। भूरा सियार लंबू ऊंट से विनती करने लगा कि इस नदी की तेज धारा को देखकर हमे बहुत डर लग रहा है तुम्हारे लौटने से मैं नदी की तेज़ धारा में बह जाऊंगा।

 

 

 

लेकिन भूरा की बातो का उसके ऊपर कोई असर नहीं होना था न हुआ। वह नदी की बीच धारा में अपनी पीठ हिलाने लगा। लंबू ऊंट ने इतनी जोर से पीठ हिलाई कि भूरा सियार नदी की तेज धार में बह गया उसका कही भी पता नहीं लगा। इसलिए विश्वास के घात नहीं करना चाहिए विश्वासघात का परिणाम बहुत भयानक होता है। भूरा को अपनी जान गंवाकर विश्वासघात की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।

 

 

 

वर्दी वाला गुंडा Pdf Download

 

 

 

पुस्तक का नाम  वर्दी वाला गुंडा Pdf
भाषा  हिंदी 
साइज  55 Mb 
पृष्ठ  334
श्रेणी  उपन्यास 
पुस्तक के लेखक  वेद प्रकाश शर्मा 

 

 

Vardi Wala Gunda Novel in Hindi Pdf

 

 

 

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