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Vashikaran Mantra in Hindi Pdf Download
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सिर्फ पढ़ने के लिये
मैंने ज्ञान का सिद्धांत समझाकर कहा। अब भक्ति रूपी मणि की महिमा सुनिए। श्री राम जी की भक्ति सुंदर चिंतामणि है। हे गरुण जी! वह जिसके हृदय के अंदर बसती है वह दिन रात अपने आप परम प्रकाश रूप रहता है। उसको दीपक घी और बत्ती कुछ भी नहीं चाहिए।
फिर मोह रूपी दरिद्रता समीप नहीं आती क्योंकि मणि स्वयं ही धन रूप है और लोभ रूपी हवा उस मणिमय दीपक को नहीं बुझा सकती है क्योंकि मणि स्वयं प्रकाश रूप है इस प्रकार मणि एक तो स्वाभाविक प्रकाश रहता है। वह किसी दूसरे की सहायता से प्रकाश नहीं करती है।
काकभुशुण्डि जी ने कहा – हे पक्षीराज गरुण जी! सुनिए, इसमें ऋषि का कुछ भी दोष नहीं था। रघुवंश के विभूषण श्री राम जी ही सबके हृदय में प्रेरणा करने वाले है। कृपासागर प्रभु ने मुनि की बुद्धि को भुलावा देकर प्रेमी की परीक्षा लिया। मन, वचन और कर्म से जब प्रभु ने मुझे अपना दास जान लिया तब भगवान ने मुनि की बुद्धि फिर पलट दिया।
ऋषि ने मेरा महान पुरुषो के जैसा स्वभाव धैर्य, अक्रोध, विनय आदि और श्री राम जी के चरणों में विशेष विश्वास देखा। तब मुनि ने मुझे बहुत दुःख के साथ बार-बार पछताकर मुझे आदर पूर्वक बुला लिया। उन्होंने अनेक प्रकार से मेरा संतोष किया और तब हर्षित होकर मुझे राम मंत्र दिया।
कृपानिधान मुनि ने मुझे बालक रूप श्री राम जी की ध्यान विधि बतलाया। सुंदर और सुख देने वाला यह ध्यान मुझे बहुत ही अच्छा लगा। वह ध्यान मैं आपको पहले ही सुना चुका हूँ। मुनि ने कुछ समय तक वहां अपने पास रखा। तब उन्होंने राम चरित मानस वर्णन किया। आदर पूर्वक वह मुझे कथा सुनाकर फिर मुनि मुझसे सुंदर वाणी बोले।
हे तात! यह सुंदर और गुप्त राम चरित मानस मैंने शिव जी की कृपा से प्राप्त किया था। तुम्हे श्री राम जी का निज भक्त जानकर इससे मैंने तुमसे सब चरित्र विस्तार के साथ कहा। हे तात! जिनके हृदय में श्री राम जी की भक्ति नहीं है उनके सामने इसे कभी नहीं कहना चाहिए।
मुनि ने मुझे बहुत प्रकार से समझाया। तब मैंने प्रेम के साथ मुनि के चरणों में सिर नवाया। मुनीश्वर ने अपने कर कमलो से मेरा सिर स्पर्श करके हर्षित होकर आशीर्वाद दिया कि अब मेरी कृपा से तेरे हृदय में सदा प्रगाढ़ राम भक्ति बसेगी।
तुम सदा श्री राम जी को प्रिय रहो और कल्याण रूप गुण के धाम, मान रहित इच्छानुसार रूप धारण में समर्थ, इच्छा मृत्यु एवं ज्ञान और वैराग्य के भंडार हो जाओ। इतना ही नहीं श्री भगवान को स्मरण करते हुए तुम जिस आश्रम में निवास करोगे वहां एक योजन तक अविद्या और माया मोह नहीं व्यापेगी।
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