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सिर्फ पढ़ने के लिये
लेकिन यह अलग बात है कि नवयुवक और नई उम्र के पशु और जानवरो में उदंडता स्वाभाविक होती है और सीखने के लिए विनम्रता आवश्यक होती है। पशु के अंदर भी समझने की क्षमता होती है वह भी अपने मालिक की बातो का समझदारी से पालन करता है और जो विनम्रता का पालन नहीं करता है उसका कही भी उपयोग नहीं होता है वह पशुओ में सांड और मनुष्यो में आवारा या उदंड कहलाता है।
नई उम्र के शेरू के साथ रामू के उम्र दराज बैल की जोड़ी बेमेल थी। आजाद रहने वाले शेरू को हल के साथ बंधन स्वीकार नहीं था। इसके विपरीत दुनिया के बंधन में बंधा हुआ रामू का बैल अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए शांत था। सुखिया ने जैसे ही हल में बंधे रामू के बैल के साथ शेरू को हांकने का प्रयास किया तो अपने ताकत के मद में चूर शेरू ने दौड़ लगा दिया।
हल और जुआ दोनों टूट गए। शेरू घर की तरफ भाग निकला। बहुत कठिनाई से रामू के बैल की जान बची। दूसरे दिन सुखिया रामू के पास गया और उसका बैल मांगने लगा। रामू अपना बैल सुखिया को देने से मना कर दिया। सुखिया ने शेरू की उदंडता कम करने के लिए दो चार आदमियों की सहायता से शेरू की नाक में नकेल डाल दिया।
फिर उस नकेल में मोटी और मजबूत रस्सी लगाकर खूंटे से बाँध दिया। अब नकेल लग जाने से शेरू की हेकड़ी खत्म हो गयी। एक दिन फिर सुखिया रामू के पास उसका बैल मांगने पहुंच गया। रामू सुखिया से बोला – मैं अपना बैल तुम्हे एक शर्त पर दे सकता हूँ।
सुखिया को रामू के बैल की आवश्यकता थी अतः वह बोला तुम मुझे अपनी शर्त पर ही अपना बैल मुझे आज के लिए दे दो। रामू सुखिया से बोला – सामने खरीफ की फसल का मौसम आने वाला है। अगर हमारे बैल को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंची तब मैं तुम्हारा बैल अपने पास तब तक रखूंगा जब तक वह ठीक नहीं हो जायेगा।
सुखिया बोला – रामू भाई! मुझे तुम्हारी यह शर्त मंजूर है। तुम जितनी बार चाहो उतनी बार शेरू को लेकर अपने खेत में हल चला सकते हो हमारी तरफ से कोई आपत्ति नहीं है। रामू ने खुश होकर सुखिया को अपना बैल दे दिया। सुखिया रामू का बैल लेकर अपने घर आया फिर शेरू के कंधे पर जुआ डालकर रामू के बैल को भी जुआ में बांध दिया।
खेत में ले जाकर जुए में हल को बांधा फिर हल चलाने के लिए आवाज लगाया। शेरू पहले की भांति जुआ तोड़कर भागने का प्रयास किया लेकिन इस बार सुखिया की व्यवस्था चाक चौबंदी थी। शेरू की नकेल सुखिया के हाथ में थी। उसने लगाम खींच दिया।
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