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Ved Prakash Sharma novel Vijay Vikas Pdf

 

 

 

 

 

 

 

राजू नाम का एक इमानदार लकडहारा था. वह रोज जंगल से लकड़ी काटकर उसे बाजार में  बेचता. यही उसकी रोजी-रोटी का साधन था. वह बहुत ही गरीब था. फिर भी वह अपने मेहनत के भरोसे खुश रहता था. एक दिन की बात है. वह एक नदी के किनारे एक पेड़ पर चढ़ कर सूखी लकड़ियाँ काट रहा था. तभी उसकी कुल्हाड़ी छूट कर नदी में गिर गयी.

 

 

 

वह घबराकर नीचे उतरा और कुल्हाड़ी ढूँढने लगा. तमाम कोशिशों के बाद भी कुल्हाड़ी नहीं मिली तो वह बहुत निराश हो गया और नदी  के किनारे बैठ गया.

 

 

 

 

वह दुखी होकर सोचने लगा, ” आज तो भोजन भी नसीब नहीं होगा “. इसी उधेड़बुन में उसे नीद आ गयी और वह वहीँ सो गया. अचानक से उसकी नीद टूटी. उसने देखा नदी में से एक आदमी उसे आवाज दे रहा था.

 

 

 

राजू उचककर देखा तो उस आदमी ने बोला, ” क्या हुआ भाई, बड़े परेशान दिख रहे हो “.

 

 

 

” क्या बताऊँ साहेब, आज तो भोजन भी नसीब नहीं होगा ” राजू ने कहा.

 

 

” अरे क्या हुआ? मुझे भी तो बताओ. हो सकता है मैं आपकी मदद कर सकूं ” उस आदमी ने कहा.

 

 

” साहेब मैं एक गरीब आदमी हूँ. लकड़ी काट और उसे बाज़ार में बेचकर रोजी – रोटी का जुगाड़ करता हूँ. आज जब इस पेड़ पर लकड़ी काट रहा था तो अचानक से मेरी कुल्हाड़ी छूट कर इस नदी में गिर गयी. काफी कोशिश के बाद भी नहीं मिली. मैं लकडियाँ काटने से पहले हाथ जोड़कर पेड़ों से आज्ञा लेता  हूँ फिर लकड़ी काटता हूँ” राजू से कहा.

 

 

 

 

 

” ओह! यह तो बड़ा बुरा हुआ. ठीक है मैं आपकी कुल्हाड़ी ढूँढता हूँ. अगर कुल्हाड़ी मिल जायेगी तो फिर आप लकडियाँ काट कर अपने भोजन का जुगाड़ कर लोगे ” उस आदमी ने कहा.

 

 

 

” अगर ऐसा होगा तो आपकी बड़ी मेहरबानी होगी ” राजू लकडहारे ने कहा.

 

 

 

वह आदमी नदी में एक डुबकी लागाया और एक सोने की कुल्हाड़ी लेकर निकला और लकडहारे से बोला,” क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है? ”

 

 

 

“नहीं …नहीं यह हमारी कुल्हाड़ी नहीं है ” राजू ने कहा.

 

 

 

फिर से उस आदमी ने डुबकी लगाईं और इस बार चांदी की कुल्हाड़ी निकाला और पूछा, ” यह आपकी कुल्हाड़ी है “.

 

 

” नहीं…नहीं यह भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है ” राजू ने कहा.

 

 

एक बार वह फिर से डुबकी लगाईं और इस बार उसने लकड़ी की कुल्हाड़ी निकाली और उसे देखते ही लकडहारा उछलकर बोला, ” हाँ…हाँ यही मेरी कुल्हाड़ी है “.

 

 

 

 

वह आदमी राजू की इमानदारी पर बड़ा खुश हुआ और अपने असली रूप में प्रकट हुआ. वे वरुण देव थे. उन्होंने राजू से कहा कि मैं तुम्हारी इमानदारी से बहुत खुश हूँ. मैं तुम्हें इनाम स्वरूप सोने और चांदी की कुल्हाड़ी भी दे रहा हूँ.

 

 

 

इसे बेचना मत. इसे अपने घर में हमेशा रखना. तुम्हारे हर दुःख दूर हो जायेंगे. उसके बाद वरुण देव अंतर्ध्यान हो गए. राजू ने उन्हें प्रणाम किया और ख़ुशी – ख़ुशी अपने घर पहुंचा और एक साफ़ जगह उस सोने और चांदी की कुल्हाड़ी को रख दिया.

 

 

 

उसके बाद अचानक से उसके में  ढेर सारा पैसा आ गया. उसने फर्नीचर एक बड़ी दूकान खोल ली. उसके बाद उसने शादी की और ख़ुशी से रहने लगा. उसे उसकी इमानदारी का फल मिल गया था.

 

एक बार एक व्यक्ति रेगिस्तान में फंस गया .उसके पास मौजूद खाने – पीने की वस्तुएं धीरे – धीरे समाप्त होने लगीं और एक समय ऐसा आया जब उसके पास पीने के लिए एक बूँद पानी भी नहीं बचा।

 

 

 

 

वह मन ही मन यह जान चुका था कि अगर कुछ घंटों में उसे पानी नहीं मिला तो उसकी मृत्यु निश्चित है. लेकिन उसे भगवान् पर यकीं था. उसे भरोसा था कि कोई ना कोई चमत्कार अवश्य होगा और उसे पानी जरूर मिलेगा.

 

 

 

 

 

वह कुछ दूर किसी तरह चला तो उसे एक झोपड़ी दिखाई दी. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था क्योंकि इसके पहले वह कई बार रेगिस्तान में भ्रम के कारण धोखा खा चुका था और इससे वह और भी अधिक रेगिस्तान में फंसता चला गया.

 

 

 

 

लेकिन अब उसके पास भरोसा करने के आलावा कोई चारा नहीं बचा था. वह किसी तरह उस झोपड़ी की तरफ बढ़ने लगा. वह जैसे जैसे आगे बढ़ता गया, उसकी उम्मीद बढती गयी.

 

 

 

 

उसे लगा कि इस बार भाग्य उसका अवश्य ही साथ देगा.  वह मंजिल तक पहुँच चुका था. सचमुच वहाँ झोपड़ी थी . पर यह क्या ? वह झोपड़ी तो सालों से वीरान प्रतीत हो रही थी.

 

 

 

 

फिर भी पानी की उम्मीद में वह झोपड़ी में घुसा और अन्दर का नजारा देख वह चौंक गया.    अन्दर एक हैंडपंप लगा हुआ था. उसके अन्दर एक नयी ऊर्जा आ गयी थी.

 

 

 

 

प्यास से तड़प रहा वह व्यक्ति जल्दी जल्दी हैन्डपम्प चलाने लगा. लेकिन यह क्या? वह हैन्डपम्प तो कब का सुखा हुआ प्रतीत हो रहा था.  वह बहुत निराश हो गया और निढाल होकर वहीँ बैठ गया और ऊपर आसमान की तरफ देखकर शायद यह सोचने लगा कि अब उसे कोई नहीं बचा सकता है.

 

 

 

 

तभी उसकी नजर झोपड़ी की छत से बंधी पानी से भरी एक बोतल पर पड़ी.   वह किसी तरह से उसे निकाला और पानी पीने ही वाला था कि उसने बोतल पर चिपके एक कागज़ को देखा.

 

 

 

 

जिसपर लिखा था कि इस पानी का प्रयोग हैंडपंप को चलाने में करें और वापस पानी भरकर रखना ना भूलें. अब वह एक अजीब सी स्थिति में फंस गया था. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

 

 

 

 

फिर उसने उस बोतल का पानी इस यकीं इस भरोसा के साथ हैंडपंप में डालना शुरू किया कि किसी ना किसी ने तो इसका इस्तेमाल अवश्य ही किया होगा.

 

 

 

पानी डालकर उसने भगवान से प्रार्थना की और दो तीन बार पम्प चलाने के बाद उसमें से ठंडा पानी निकलने लगा. यह उसके लिए किसी अमृत से कम नहीं था.

 

 

 

 

उसने जी भरकर पानी पिया और फिर उस बोतल को भरकर वही टांग दिया. जब वह उस बोतल को टांग रहा था तो उसे सामने एक कांच की बोतल दिखाई दी . उसमें पेन्सिल और कागज़ रखा हुआ था.

 

 

 

 

उत्सुकतावाश उसने उसे खोला तो उसमें उस रेगिस्तान से निकलने का नक्शा बनाया हुआ था. उसने उस रास्ते को याद कर लिया और झोपड़ी से बाहर गया.

 

 

 

 

वह कुछ दूर आगे बढ़ा ही था कि कुछ सोचकर वापस झोपड़ी में आया और उस पानी से भरी हुई बोतल को उतार कर उसके कागज़ पर लिखा “मेरा भरोसा करिए , यह हैंडपंप चलता है “.

 

 

 

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