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सिर्फ पढ़ने के लिए
सुमन परियो की रानी सुलेखा से कही – पहली बात यह है कि राम मिलन यहां पहुँच ही नहीं सकता है अगर वह यहां आ भी गया तो क्या आप उसकी सहायता करेंगी? आपकी बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि आप स्वयं उसकी सहायता के लिए तत्पर है।
सुमन के इस प्रश्न से रानी परी कुछ विचलित हो गयी फिर संयत होकर बोली – सुमन तुम्हे मालूम है कि यहां किसी दूसरे स्थान के प्राणी नहीं आ सकते है अगर कोई दैवयोग से आ गया तब मैं स्वयं तुम्हारी सहायता करुँगी अन्यथा नहीं। सुमन अपने मन में बोली – हमारी इच्छा क्यों नहीं होगी?
हमारे अनुसार अगर कोई प्राकृतिक व्यवधान नहीं उत्पन्न हुआ तब यहां मिलन के लिए आना कोई असंभव कार्य नहीं है देर भले हो जाय लेकिन मिलन अवश्य आएगा। सुलेखा बोली – क्या सोच रही हो सुमन? सुमन बोली – आपके इस सहयोग के लिए धन्यवाद रानी साहिबा। समय आने पर ही इसकी परीक्षा होगी। रानी का दरबार समाप्त हो गया था सभी परी अपने दैनिक कार्य में लग गयी। सुमन को समय की प्रतीक्षा थी।
मिलन जिस महात्मा के नींद से जागने की प्रतीक्षा कर रहा था उनका नाम पुनीत था और पहले जिस महात्मा से मिलन को सहायता प्रदान हुई थी उनका नाम सुनीत था। यह दोनों गुरु भाई थे। इन दोनों के गुरु का नाम प्रबोध था जो आठ योजन की दूरी पर बहुत गहनतम जंगल में रहते थे।
पुनीत महाराज के जागने में एक दिन की अवधि शेष थी। मिलन पुनीत महाराज के आश्रम की साफ-सफाई में लग गया। महात्मा पुनीत जब छः महीना बीत जाने पर जागते थे उन्हें क्षुधा परेशान करती इसलिए वह अपने नींद के प्रभाव में अपने आश्रम के सामने नीम के पेड़ की छाल को ही खाने का प्रयास करते थे।
लेकिन इस बार मिलन उस नीम के पेड़ के तने में स्वादिष्ट और मीठे वस्तु का लेप कर दिया था। महात्मा ने जैसे ही उस नीम के तने को नींद के प्रभाव में आकर खाने का प्रयास किया तब उन्हें कड़वे की जगह स्वादिष्ट मीठापन का अनुभव हुआ।
महात्मा पुनीत बहुत ही खुश हुए और बोले – कौन है यहां जिसने हमारी इतनी सेवा किया है मैं उससे बहुत खुश हूँ। मिलन आश्रम की ओट से निकलकर महात्मा पुनीत के चरणों में गिर पड़ा। महात्मा ने उसे उठाया और कहा – वत्स! मैं तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हूँ तुम मुझे अपनी इच्छित वस्तु मांग सकते हो मैं तुम्हारी इच्छित वस्तु को प्राप्त करने में अवश्य ही सहायता करूँगा।
महात्मा को तीन बार वचन बद्ध करने के बाद मिलन उनसे बोला – महात्मा जी! मुझे सुमन परी चाहिए। महात्मा पुनीत बोले – तुमने हमारे समक्ष बहुत कठिन प्रश्न उपस्थित कर दिया है लेकिन मैंने तुम्हे वचन प्रदान कर दिया है इसलिए तुम्हारी सहायता अवश्य ही करूँगा।
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