Vishudh Manusmriti Pdf | विशुद्ध मनुस्मृति Pdf Download

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Vishudh Manusmriti Pdf / विशुद्ध मनुस्मृति पीडीएफ

 

 

 

पुस्तक का नाम मनुस्मृति
पुस्तक के लेखक सुरेंद्र कुमार
भाषा हिंदी हिंदी
फॉर्मेट PDF
कुल पृष्ठ 338
साइज 62.6 MB
श्रेणी साहित्य

 

 

 

Vishudh Manusmriti Pdf
विशुद्ध मनुस्मृति Pdf Download

 

 

 

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मनुस्मृति के बारे में 

 

 

 

मनु एक मनुष्य है जो अपने कर्मो से महान बन गए। जिन्होंने मानव समाज को शिक्षित, विकसित और समझदार बनाने के लिए धर्म, शिक्षा, तकनीक, व्यवस्था और कानून दिया। सभी भाषाओ के मनुष्य वाची शब्द, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी मनु शब्द से प्रभावित है।

 

 

 

 

संसार के प्रथम मनुष्य स्वायंभुव मनु और प्रथम स्त्री शतरूपा थी। सभी मनु मानव जाती के संदेश वाहक है। सबसे पहले तो यह जानना आवश्यक है कि कौन-कौन से मनु है। प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानो से संसार के समस्त जनो की उत्पत्ति हुई। मनु की संतान होने के कारण ही वह मानव कहलाये।

 

 

 

 

जिस तरह से जैन धर्म में 14 कुलकरो ने समाज के लिए कार्य किया इन्होने स्वयं को कभी भगवान नहीं माना बल्कि यह वेदो की सच्ची राह पर चलकर महान बन गए।

 

 

 

 

ऐसे कई कारण थे मनुओ को हाशिये पर धकेल दिया गया। लेकिन मनु ही भारतीय समाज के और राष्ट्र के निर्माता रहे है। उनके हाशिये पर चले जाने से ही मानव समाज अपने इतिहास से विलग हो गया।

 

 

 

 

एक अनुमानित गणना के अनुसार लगभग 9500 ईशा पूर्व स्वायंभुव मनु का जन्म हुआ था। उसके बाद उनके ही कुल में क्रमशः स्वारोचिष, औत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, सावर्णि, दक्ष सावर्णि, ब्रह्मा सावर्णि, धर्म सावर्णि, रुद्र सावर्णि, देव सावर्णि और इंद्र सावर्णि।

 

 

 

 

इंद्र सावर्णि मनु ने इस मन्वन्तर के प्रारंभ में वैदिक संस्कार और सभ्यता को पुनर्स्थापित कर भारतीय समाज को उन्नत और संगठित किया था। माना जाता है कि जो मनुस्मृति वर्तमान में अस्तित्व है उसे चौदहवे मनु मनु इंद्र सावर्णि के मार्ग दर्शन में सूत्र बद्ध किया गया था। इनका अवतरण श्रवण मास में कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को हुआ था।

 

 

 

मनुस्मृति की ऐतिहासिकता

 

 

 

महाभारत में महाराज मनु की चर्चा बार-बार की गई है। महाभारत अनुशासन पर्व और शांति पर्व में किन्तु मनस्मृति में महाभारत कृष्ण या वेद व्यास का नाम तक नहीं है। ऐतिहासिक प्रमाणों और साहित्यिक तथ्यों के अनुसार महाभारत का रचना काल 3150 ईशा पूर्व का लिखा हुआ ग्रंथ माना जाता है।

 

 

 

 

मनुस्मृति के रचनाकार कौन?

 

 

 

कुछ विद्वान मानते है कि परंपरानुसार यह स्मृति स्वायंभुव मनु द्वारा रचित है। वैवस्वत मनु या प्राचनेस द्वारा नहीं। धर्मशास्त्रीय ग्रंथकारो के अतिरिक्त शंकराचार्य, शबर स्वामी जैसे दार्शनिक भी प्रमाण रूपेण इस ग्रंथ को उद्धृत करते है।

 

 

 

 

महाभारत में स्वायंभुव मनु एवं प्रचेतस मनु में अंतर बताया है। जिनमे प्रथम धर्म शास्त्रकार एवं दूसरे अर्थ शास्त्रकार कहे गए है। उनके ही कुल में आगे चलकर इंद्र सावर्णि ने इस ग्रंथ को परिष्कृत किया।

 

 

 

 

 

मनुस्मृति में हेर फेर

 

 

 

 

ऐसी मान्यता अधिक है कि अंग्रेज काल में इस ग्रंथ में हेर-फेर करके इसे जबरन मान्यता दी गई और इसी आधार पर हिन्दुओ का कानून बनाया गया।

 

 

 

 

अंग्रेजो के जाने के बाद की सरकारों ने भी मनुस्मृति में की गई गड़बड़ी की तरफ ध्यान न देकर अंग्रेजो द्वारा बनाये गए कानून को ही आगे बढ़ाने का कार्य किया।

 

 

 

 

कुछ विद्वान मानते है कि वेद सम्मत वाणी का मनुस्मृति में खुलासा किया गया है। मनुस्मृति में ही वेद को अच्छे से समझाया गया है। मनुस्मृति की बात करे तो अब  14 मनु हो गए है।

 

 

 

 

प्रत्येक मनु ने अलग-अलग मनुस्मृति की रचना की है। इसी प्रकार प्रत्येक ऋषियों की अलग-अलग स्मृतियाँ है और इस तरह से 20-25 स्मृतियाँ मौजूद है। पाश्चात विद्वानों के अनुसार प्राचीनता होने पर भी वर्तमान मनुस्मृति ईशा पूर्व चतुर्थ शताब्दी से प्राचीन नहीं हो सकती।

 

 

 

सिर्फ पढ़ने के लिए

 

 

 

 

फिर एक-एक राक्षस को पकड़कर वह सभी वानर भाग चले। ऊपर आप और नीचे राक्षस योद्धा। इस प्रकार वह किले के उपर से धरती पर आकर गिरते है।

 

 

 

चौपाई का अर्थ-

 

 

 

श्री राम जी के प्रताप से प्रबल वानरों के झुण्ड राक्षस योद्धाओ के समूह को मसल रहे है। वानर फिर जहां-तहाँ किले पर चढ़ गए और प्रताप में सूर्य के समान श्री रघुवीर जी की जय बोलने लगे।

 

 

 

राक्षसों  प्रकार भागने लगे जैसे जोर की हवा चलने पर बादलो का समूह तितर-बितर हो जाते है। लंका नगरी में बहुत हाहाकार मच गया। बालक, स्त्रियां और रोगी असमर्थता के कारण रोने लगे।

 

 

 

 

सब मिलकर रावण को कोसने लगे कि राज्य करते हुए इसने मृत्यु को बुला लिया। जब रावण ने अपनी सेना का विचलित होना सुना तब भागते हुए योद्धाओ को लौटाकर वह क्रोधित होकर बोला।

 

 

 

 

मैं जिसे रण में भागते हुए देखूंगा और सुनूंगा उसे स्वयं ही परलोक भेज दूंगा। मेरा ही सब कुछ खाया, भोग किया अब रणभूमि में प्राण प्रिय लगने लगे।

 

 

 

 

रावण के कठोर वचन सुनकर सब वीर डर गए और लज्जित होकर क्रोध करके युद्ध के लिए लौट चले। रण में शत्रु के सम्मुख युद्ध करते हुए परलोक जाने में ही वीर की शोभा है यह सोचकर उन्होंने तब प्राणो का लोभ छोड़ दिया।

 

 

 

 

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