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चतुर नल और नील ने सेतु बांधा। श्री राम जी की कृपा से उनका यह उज्वल यह सर्वत्र फ़ैल गया। जो पत्थर अपने साथ ही दूसरों को भी डूबा देते है।
वही जहाज के समान स्वयं तैरने वाले और दूसरों को पार ले जाने वाले हो गए। यह न तो समुद्र की महिमा वर्णन की गई है न पत्थरो का गुण है और न वानरों की कोई कलाकारी है।
3- दोहा का अर्थ-
श्री रघुवीर जी के प्रताप से पत्थर भी समुद्र पर तैर गए ऐसे श्री राम जी को छोड़कर जो किसी दूसरे स्वामी को भजते है वह निश्चय ही मंद बुद्धि है।
चौपाई का अर्थ-
नल-नील ने सेतु बांधकर उसे बहुत ही मजबूत बनाया। देखने पर वह कृपानिधान श्री राम जी के मन को बहुत ही अच्छा लगा। सेना चली जिसका वर्णन नहीं हो सकता। योद्धा वानरों के समुदाय गरज रहे है।
कृपालु श्री रघुनाथ जी सेतुबंध के तट पर चढ़कर समुद्र का विस्तार देखने लगे। करुणा के मूल प्रभु के दर्शन के लिए सब जलचरो के समूह जल के ऊपर निकल आये।
बहुत तरह के मगरमच्छ और सर्प थे। जिनके सौ-सौ योजन के बहुत बड़े विशाल शरीर थे। कुछ ऐसे जंतु भी थे जो उन्हें भी निगल सकते थे किसी के डर से तो वह भी डर रहे थे।
वह सब अपना स्वाभाविक बैर भूल कर प्रभु का दर्शन कर रहे है। हटाने से भी नहीं हटते है। उन सबके मन हर्षित है वही सुखी हो गए। उनकी ओट के कारण जल नहीं दिखता है।
वह सब भगवान का रूप देखकर प्रेम और आनंद में मग्न हो गए। प्रभु श्री राम जी की आज्ञा प्राप्त कर सेना चली। वानर सेना की विपुलता अधिक संख्या को कौन कह सकता है।
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