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Yagyopavit Sanskar Vidhi Pdf
अनादि अनिधन शुद्ध सम्रद्ध ओर शुद्धि समृद्धि के कारण परम पुनीत ओ्रीजिनधर्म में अन्यतत्वों के समान एक यह संस्कार तत्व भी उसे अप्रतिहत अबाध रीति नीतिसे प्रतिपादित है कि-जिसको समानता- यन्लेहास्ति न कुत्रचित् ? इस वाक्य के अनुसार अल्यत्न कहीं भी नहीं है ।
कारण कि यहां की तत्व शेढी जिस नीति और उपनीति से अ्रतिपादित है उसकी मूठ भित्ति (नीव) अविरुद्ध अनेक धर्म प्रतिपादिका स्वाद्वादप्रवचनमुद्रा सप्तभंगी है ।
इस जेन्ती ( जिनोक्ता . चा विजेता ) नीति के बिना जहां कहीं सी तत्व प्रतिपादन है. बह’ खपुष्पके समान मिथ्या तथा अभावरूप द्वी है। . ‘ ज्ञों छोग जन कुल में उत्पन्न होने मात्रसे’ अपने को जेनी _ समझ कर जेनधर्म तथा उसके तत्वों में से किसी भी तत्व का -स्या- द्वाद नीति के विना प्रतिपादन करने की शेछी का अबलम्बन करते हैं वे भी उसी कोटि में परिगणित हैं जेसे कि अन्य घर्मी। . : . मैं इस छोटी सी भूमिका में उन स्व धर्मियों की समालोचना करने के लिये उद्य॑ क्त’ नहीं हुआहू किन्तु इस विषय के लिये
Yagyopavit Sanskar Vidhi Pdf Download
पुस्तक का नाम | Yagyopavit Sanskar Vidhi Pdf |
पुस्तक के लेखक | ज्ञान सागर जी महाराज |
भाषा | हिंदी |
साइज | 4.8 Mb |
पृष्ठ | 158 |
श्रेणी | धर्म |
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