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घर की चीजों का संयम, कार्य में चतुर होना, प्रसन्नचित्त, बहुत खर्च न करना, सास ससुर के पैरो पर प्रणाम करना और पति की सेवा में तत्पर रहना ये स्त्री के धर्म है। खेलना, श्रृंगार करना, भीड़ में जाना, उत्सव देखना, हंसना और दूसरे के घर जाना, जिसका पति विदेश गया हो वह ये सब बाते छोड़ देवे।
कुमारी की रक्षा पिता करे, विवाहिता होने पर पति, बुढ़ापे में पुत्र और इनमे से न हो तो जाती के लोग रक्षा करे, स्त्रियों को स्वतंत्र कभी न होने देना चाहिए। पति पास न हो तो पिता, माता, पुत्र, भाई, सास, ससुर और मामाइनके पास रहे नहीं तो निन्दित होती है।
पति के प्रिय और हितकाम में तत्पर, अच्छा आचरण करने वाली और इन्द्रियों को अपने वश में रखने वाली स्त्री यहां बड़ाई पाती है और परलोक में बड़ा सुख पाती है। सवर्णा स्त्री के रहते दूसरी से यज्ञ आदि न करावे सवर्णा कई हो तो बड़ी को छोड़ औरो से न करावे। डाउनलोड करने के लिए नीचे दी गयी बटन पर क्लिक करे।
पुस्तक का नाम | याज्ञवल्क्य स्मृति Pdf |
पुस्तक के लेखक | वाधवा शालिनी |
भाषा | हिंदी |
साइज | 6.2 Mb |
पृष्ठ | 246 |
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