Yoga Vashishtha Pdf Hindi | योग वशिष्ठ Pdf

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सिर्फ पढ़ने के लिये 

 

 

 

स्वर्ण अंगूठी मिलन से बोली – आप यहां इन परियो के समीप को ही अपना लक्ष्य मान बैठे है। आपके अंदर किसी भी जंतु या जीव की भाषा समझने की सामर्थ्य है। सरोवर के किनारे जो पीपल का वृक्ष है उसपर शुक पक्षी के जोड़े की बात को ध्यान से सुनिए तब आपको सारी बातें मालूम पड़ जाएगी।

 

 

 

 

मिलन उस पीपल के वृक्ष के ऊपर शुक जोड़े के समीप अदृश्य रूप से उपस्थित हो गया। नर शुक पक्षी मादा शुक पक्षी से कह रहा था – यह जो मानव दिव्य शक्तियों से पूर्ण है वह अपने उद्देश्य से भटक गया है। यह इन परियो के प्रति आशक्त होकर मूल जड़ को ढूंढने में विफल है।

 

 

 

 

जबकि मूल जड़ की प्राप्ति के बाद इन परियो के जैसी लाखो परियां इसकी सेवा में तत्पर हो सकती है। मादा शुक नर पक्षी पक्षी से बोली – भली प्रकार से समझाओ। नर शुक पक्षी बोला – यह एकदम सरल बात है कि इसे सुमन परी और रानी परी के पास जाने का प्रयास करना चाहिए।

 

 

 

 

उन दोनों का सानिध्य प्राप्त करने के बाद असंख्य परियां इसकी सेवा में स्वतः ही उपस्थित हो जाएँगी। मादा शुक पक्षी नर पक्षी से बोली – यह मनुष्य सुमन और सुलेखा के पास कैसे पहुँच सकता है? नर शुक पक्षी मादा शुक पक्षी से बोला – यहां से उत्तर दिशा में एक योजन पर स्वर्ण जल से युक्त एक सरोवर है।

 

 

 

 

वहां पर सभी वृक्ष इत्यादि सुनहले रंग के है वही सुमन परी अपनी सहेली रानी परी सुलेखा के साथ स्नान करने के लिए आती है। उनके साथ अन्य परियो का समूह भी रहता है। इस मनुष्य को वही जाकर सुमन से मिलने का प्रयास करना चाहिए।

 

 

 

 

दोहा का अर्थ-

 

 

 

तब योग रूपी पावक प्रकट करके उसमे समस्त शुभाशुभ कर्म रूपी ईंधन लगा दे। जब वैराग्य मक्खन का ममता रूपी मैल समाप्त हो जाए तब बचे हुए ज्ञान रूप घी को निश्चयात्मिका बुद्धि से ठंडा करे। तब विज्ञान रूपिणी बुद्धि उस ज्ञान रूपी निर्मल घी को प्राप्त कर उससे चित्त रूपी दिए को भरकर समता की दीवट बनाकर उसपर उसे दृढ़ता पूर्वक जमाकर रखे।

 

 

 

 

जाग्रत, स्वप्न और सुसुप्ति तीनो अवस्थाये और सत्व, रज, तम तीनो गुण रूपी कपास से तुरीयावस्था रुई को निकालकर फिर उसे संवारकर उसकी सुंदर कड़ी बत्ती बनावे। इस प्रकार तेज की राशि विज्ञानमय दीपक को प्रज्वलित करे जिसके समीप जाते ही मद आदि सब पतंगे नष्ट हो जाए।

 

 

 

 

चौपाई का अर्थ-

 

 

 

‘सोSहमस्मि’ वह ब्रह्म मैं हूँ। यह जो अखंड कभी नं टूटने वाली वृत्ति है वही उस ज्ञान दीपक की परम प्रचंड लौ है। इस प्रकार जब आत्मानुभव के सुंदर सुख का प्रकाश फैलता है तब संसार के मूल भेद रूपी भ्रम का नाश हो जाता है और महान बलवती अविद्या के परिवार मोह आदि का अपार अंधकार मिट जाता है।

 

 

 

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