योग वशिष्ठ हिंदी Pdf | Yoga Vasistha In Hindi PDF

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Yoga Vasistha In Hindi PDF

 

 

 

 

 

 

जिस समय किस का भी चित्त एक क्षण के लिए भी (आत्म तत्व ) में स्थित हो जाता है तो वह अवस्था ही उसकी अत्यंत समाधि कहलाती है। ऐसा योग वशिष्ठ में कहा गया है। जिस किसी का भी चित्त नित्य प्रबुद्ध है ,वह अपने सारे कार्य करते हुए भी (आत्म तत्व )का रसा स्वादन करता हुआ सर्वथा ही समाधि प्रज्ञ है। अथवा समाधि में रमा हुआ है।

 

 

 

 

लेकिन जो पद्मासन मुद्रा में स्थित हो कर ब्रह्मान्जलि करने के लिए अपने चित्त को आत्मपद में लीन नहीं कर पाते हैं उन्हें किसी भी समय विश्रांति नहीं मिलती है ,न ही वह समाधि में स्थित हो पाते हैं। जिसका चित्त सदैव शांत और समाहित नित्य तृप्त है जो सदा ही -भूतार्थ -का अनुभव करता है अथवा उसे (ज्यों का त्यों )रूप में भान हो जाता है ,वही सदा सर्वदा समाधि में स्थित रहता है।

 

 

 

 

जो पुरुष अपनी जागृत अवस्था में या सुप्त अवस्था में भी उस (परमतत्व )का सदैव चिंतन करता है या अपने जागृत अवस्था में अपने कार्य को करते हुए भी उस -परम् तत्व -में लीन रहता है उसे ही सदा समाधिस्थ समझना चाहिए। जिस प्रकार से नदी के प्रचंड वेग को कोई भी रोक नहीं सकता उसी प्रकार से समाधिस्थ को रोकने का प्रयास विफल हो जाता है।

 

 

 

 

 

क्यों की ,कोई भी अपने परमानंद को छोड़ना नहीं चाहता है। जिस गूंगे व्यक्ति को गुड़ का स्वाद मिलने पर वह किसी को बता नहीं सकता है ,उसी तरह ज्ञानी पुरुष अपनी समाधि की अवस्था को नहीं बता सकता उसे सिर्फ और सिर्फ अनुभव किया जा सकता है। जिस तरह एक माँ अपने छोटे बालक का सुख ,जान सकती है ,उसी तरह से समाधि और शांति की अवस्था भी होती है।

 

 

 

 

Yoga Vasistha In Hindi PDF Download

 

 

 

पुस्तक का नाम  Yoga Vasistha In Hindi PDF
पुस्तक के लेखक  वशिष्ठ 
भाषा  हिंदी 
साइज  51.5 Mb 
पृष्ठ  750 

 

 

Yoga Vasistha In Hindi PDF
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